How to practice Meditation
The practice of meditation is an act in which the yogi concentrates his mind to connect with the Supreme Soul. In the serious practice of meditation, the yogi deliberately tries to get closer to the manifestations of the Almighty Supreme Soul. This work is possible in a very simple manner, but its effects are very detailed.
We learn how to meditate. First of all, select a beautiful and secluded place after yoga sun in the morning and evening. Again, in Siddhasana and Padmasana, sit without moving. Then concentrate your mind on breathing on your navel. Keep the eyes closed and the spine of the back straight. Pull the medicine so slowly that you can’t hear the sound of pulling and releasing it yourself. This should be done in such a way that the breathing speed slows down until the breath is drawn more than four to five times per minute. You should inhale again and fill the lower and upper lungs, but the body is at least moved. The slower the breathing speed, the less restless the mind will be. The calmer the mind, the more you will be related to the Centre. You don’t have to think about what you are doing or what you want to do. It is necessary that both your body and mind remain stable as possible. Sitting in siddhasana or padmasana forat least 10 minutes thus stabilizes the body and mind. Then focus your mind on the middle point of the eyebrows and stay in the same posture as long as you find comfort. Without moving-you sit down. Initially you should meditate onthe agna chakra for about ten minutes and gradually increase this time. This will give you ultimate happiness. The restlessness of the mind will be removed. You will be able to sleep in a deep sleep at night with a fearless heart.
ध्यान
ध्यान का अभ्यास ऐसा कार्य है, जिसमें योगी परमात्मा से सम्पर्क स्थापित करने के लिए अपना मन एकाग्र करता है। ध्यान के गंभीर अभ्यास में योगी सर्वशक्तिमान परमात्मा की अभिव्यक्तियों के अधिकतम समीप आने का, जानबूझकर प्रयास करता है। यह कार्य अत्यंत ही सरल पद्धति से संभव है, किन्तु इसके प्रभाव अत्यन्त ही विशद हैं।
हम ध्यान करने की विधि सीखें। सर्वप्रथम प्रातःकाल एवं संध्या समय योगा सन के पश्चात् किसी सुन्दर एवं एकान्त स्थान का चयन करें। पुनः सिद्धासन एवं पद्मासन में, बिना हिले-डुले बैठ जायँ। तब आप अपनी नाभी पर श्वास प्रश्वास पर अपना मन एकाग्र करें। आखें बंद रखें और पीठ की रीढ़ सीधे रखें। दवास इतना धीरे-धीरे खींचे कि उसको खींचने और छोड़ने की ध्वनि आप स्वयं न सुन सकें। यह कार्य इस प्रकार हो कि श्वास की गति तबतक मन्द से मन्दतर हो जाय जबतक कि श्वास प्रति मिनट चार से पांच बार से अधिक न खींची जाय । आप श्वास फिर से खींच कर फेफड़े के निचले और ऊपरी क्षेत्रों में भर दें, किन्तु शरीर कम-से-कम हिले डुले । श्वास की गति जितनी धीमी होगी, मन भी उतना ही कम अशान्त होगा। मन जितना शान्त रहेगा, उसी अनुपात में केन्द्र से आपका सम्बन्ध स्थापित होगा । आप क्या कर रहें हैं अथवा क्या करना चाहते हैं, यह आपको सोचना नहीं होगा। आवश्यक यह है कि आप का शरीर और मन दोनों यथा संभव स्थिर रहे सिद्धासन अथवा पद्मासन में इस प्रकार कम-से-कम १० मिनट बैठने से शरीर और मन स्थिर हो जाता है। तब आप भौहों के मध्य विन्दु पर अपना मन केन्द्रित करें और जितनी देर तक आपको आराम मालूम पड़े, आप इसी मुद्रा में रहें। बिना हिले-टुले आप बैठे रहें। आरंभ में आप करीब दस मिनट तक आज्ञा चक्र पर ध्यान करें और धीरे-धीरे यह समय बढ़ाया जाय ।इससे आपको परम सुख की प्राप्ति होगी। चित्त की चंचलता दूर होगी । निर्भय मन से रात्रि में घोर निन्द्रा में सो पायेंगे ।