Benefits of Sarvangasana

Benefits of Sarvangasana

1. This asana is helpful in controlling weight by affecting the glands of the throat. It develops the power of the eyes and brain.
2. It relieves asthma, respiration (Bronchitis), and headaches Gives and corrects the tone of the singers.

3. Helps in curing blood circulation and improves the functioning of the throat institute and vowel fibers.

4. It purifies digestion.

5. Helps in activating and developing breathing and sexual glands.

6. This asana has a favourable effect on the feel foot, abdominal growth and hemorrhoids and benefits all the muscles and muscles connecting the head and spinal cord.

7. It helps in bringing many important organs and glands to their previous position.

8. Relaxes the legs and other stressful areas. He does not allow the disease to occur and if so, he is also helpful in curing it.

9. Mental forces ignite and kundalini awakens power. 10. This spinal cord provides adequate amount of blood to the roots of the muscles.

11. It keeps the spinal cord quite flexible and improves the functioning of the liver.

12. Flexibility in the spine means eternal flexibility.

13. It inspires you to work hard and strengthens digestion.

14. Celibacy is helpful in rearing.

15. Dreams do not allow faults.

16. It acts as a blood booster and blood purifier
17. It relieves various types of physical pain.

18. It is a great pose for boys and girls.

19. It removes cheaper and saturates hormones (pranti-juice) .
20. This asana is related to the back road, road muscles and surrounding institution called spinal cord. This institute needs to keep the practice of sarvangasana is healthy.

How to Do Sarvangasana

1. Lie down on the ground, both hands on both sides of the waist and palms facing down.

2. Lower the palms so that their pressure is on the ground.
3. Lift both legs slowly, bend them on the knees, and bend back, Unless the thigh touches the chest.

4. Take the help of hands in the back. Rest the knee in the ground and support the back with your hands.

5. Slowly and carefully raise your body upside down so that it remains Sodhi.

6. When this posture starts gaining momentum, stop.

7. Finally, the body becomes half-cut on the back of the head, neck, shoulders and elbows.

8. Straighten the surface so that the hood touches the chest.

9. To bring the body to the ground, first bend the legs from the knees and lower the knees and bring them as close to the head as possible.

10. Finally, place your hands on the ground and base yourself on them.

11. Now you move forward and bend your neck so that the back of your head

12 when it occurs on the kagzamin. When you turn your back and slowly make them 13 on the ground .Mentally, you are stress-free and Loosen and go into governance for 2 minutes.

Note: While raising your feet, you should only exhale while pulling the yas and lowering your legs and when the legs are taut, the breathing process is normal for 1 to 3 minutes.

 

Memorable points while  performing sarvangasana

1. Before lifting your feet, fix the condition of the head and elbows.

2. Always lift your feet slowly from the ground. This helps in keeping the abdominal muscles.

3. Make the body stand upright. Touch the chest in the last position.

4. Close your eyes, take rest, focus your mind on your breath. Keep counting to breathe and exhale to know the time.

5. complete activity control, complete with severity and balance h6 . Remember that the neck is backwards, so that the head is on the ground while descending and moving forward.

7. Keep your attention on the purification cycle.

8. Do not do this asana by a person suffering from thyroid and liver , girls below the age of fourteen , do not do this asana on the advice of an experienced guru .




सर्वांगासन से लाभ

१. यह बासन गले की ग्रंथियों को प्रभावित कर वजन नियंत्रित करने में सहा यक होता है। यह आँखों और मस्तिष्क की शक्ति विकसित करता है।
२. यह दमा, श्वसनोदाह (Bronchitis), और सिरदर्द में राहत देता है और गायकों का स्वर ठीक करता है।

३. रक्त संचार ठीक करने में सहायक है और कंठ-संस्थान तथा स्वर तन्तुओं की कार्य प्रणाली ठीक करता है।

४. यह पाचन क्रिया शुद्ध करता है।

५. श्वास और यौन ग्रंथियों को सक्रिय एवं विकसित करने में सहायक है। ६. फीलपाँव, पोथा वृद्धि और बवासीर पर इस आसन का अनुकूल प्रभाव पड़ता है तथा यह सिर और मेरुदण्ड को जोड़ने वाले सभी स्नायुओं और मांसपेशियों को लाभ पहुंचाता है।

७. अनेक महत्त्वपूर्ण अंगों और ग्रंथियों को अपनी पूर्व स्थिति में पहुंचाने में सहायक है ।

८. पैरों और अन्य तनावपूर्ण क्षेत्रों को आराम देता है। हानिया की बीमारी होने नहीं देता और यदि हो जाय, तो उसे ठीक करने में भी सहायक है।

९. मानसिक शक्तियाँ प्रज्वलित करता है और कुण्डलिनी शक्ति जगाता है।
१०. यह मेरुदण्ड स्नायुओं की जड़ों में पर्याप्त मात्रा में रक्त प्रदान करता है ।

११. यह मेरुदण्ड को काफी लचीला रखता है और यकृत की कार्य प्रणाली में सुधार लाता है।

१२. मेरुदण्ड में लचीलापन रहने का तात्पर्य है चिर-योवन ।

१३. यह आपको परिश्रम करने की प्रेरणा देता है और पाचन क्रिया को शक्तिशाली बनाता है।

१४. ब्रह्मचर्य-पालन में सहायक है।

१५. स्वप्नदोष नहीं होने देता।

१६. यह रक्त वर्धक तथा रक्तशोधक का काम करता
१७. यह विभिन्न प्रकार के शारीरिक दर्द दूर करता है।

१८. यह लड़कों और लड़कियों के लिए अति उत्तम मुद्रा है। इससे पूरी मिलती है और शीर्षासन के सभी लाभ प्राप्त होते हैं, साथ ही वह हानिकार प्रभाव नहीं होता, जो कभी-कभी शीर्षासन करनेवालों को हो जाता है।

१९. यह सस्ती दूर करता है और हारमोन्स (प्रन्थि-रस) को संतुि करता है।

२०. इस आसन का सम्बन्ध पीठ की रोड़, रोड़-स्नायु और आसपास के संस्था से है, जिसे मेरुदण्ड कहते हैं। इस संस्थान को सर्वांगासन के अभ्यास स्वस्थ रखना आवश्यक है ।

 

सर्वांगासन कैसे करें

१. जमीन पर चित्त लेट जाइये, दोनों हाथ कमर के दोनों तरफ रहें और हथेलियां नीचे की ओर रहें।

२. हथेलियों को नीचे की ओर करें, ताकि उनका दबाव जमीन पर पड़े ।
३. दोनों पैर धीरे-धीरे ऊपर उठाइये, घुटनों पर उन्हें मोड़ें, और पीछे झुकायें, जबतक कि उड्ढी छाती स्पर्श न करे ।

४. हाथों की सहायता पिछले भाग में लीजिये। केहुनियों को जमीन में टिकाकर हाथों से पीठ को सहारा दें।

५. धीरे-धीरे और सावधानी के साथ अपना शरीर उल्टे खडा करें, ताकि वह सोधी रहे ।

६. जब इस मुद्रा में जोर पड़ने लगे, तो रुक जायँ ।

७. अंत में शरीर सिर के पिछले भाग, गर्दन, कंधों और केहुनियों पर आधा रित हो जाय।

८. पृष्ठ भाग को सीधा करें ताकि हुड्ढी छाती का स्पर्श करे ।

९. शरीर को जमीन पर लाने के लिए पहले पैरों को घुटनों से मोड़ें और घुटने नीचे करें और उन्हें यथासंभव सिर के समीप लायें ।

१०. अन्त में आप अपने हाथों को जमीन पर रखें और उन पर अपने को आधारित करें।

११. अब आप आगे बढ़े और गर्दन टेढ़ी करें ताकि आपके सिर का पिछला भाग और पीठ जमीन पर आ जायें ।

१२. जब आपकी पीठ ओर कीजिये और धीरे-धीरे उन्हें जमीन पर
१३. मानसिक दृष्टि से आप अपने शरीर की सतनावरहित एवं ढीली कर दे और २ मिनट तक शासन में चले जायें।

सर्वांगासन करते समय स्मरणीय विन्दु

१. पैर उठाने के पूर्व, सिर और केहनियों की स्थिति ठीक कर लें ।

२. सदैव पैर जमीन से धीरे-धीरे उठायें। इससे पेट की मांसपेशियों को रखने में मदद मिलती है ।

3. शनैः शनैः शरीर को सीधे खडा करें। अंतिम स्थिति में छुड्ढी छाती स्पर्श करे।

४. आंखें बन्द करें, विश्राम लें, मन को श्वास पर केन्द्रित करें। समय जानने लिए श्वास खींचने और छोड़ने को गिनते रहें।

५. पूरी गतिविधि नियंत्रण, गंभीरता और संतुलन के साथ पूरी की ज ६. स्मरण रखें कि गर्दन पीछे की ओर हो, ताकि नीचे उतरने और आगे बढ़ समय सिर जमीन पर रहे।

७. ध्यान विशुद्धि चक्र पर रहे। (गले के पीछे जड़ में)

८. कंठ-ग्रंथि (थायरायड) और यकृत से पीड़ित व्यक्ति यह आसन न करें चौदह वर्ष से कम उम्र की लड़कियां, अनुभवी गुरु की सलाह |

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